डायबिटीज़ भारत ही नहीं बल्कि विश्व में भी तेजी से फैल रहा है और इसकी चपेट में बच्चों से लेकर बूढ़े तक आ रहे हैं। डायबिटीज़ होने की वजह से व्यक्ति के जहां कई अंग गंभीर रूप से प्रभावित होते हैं वहीं यह कई बीमारियों का कारण भी बन सकता है। आज हम अपने इस लेख में आपको बताने जा रहे हैं कि आखिर किन परिस्थितियों में डायबिटीज़ के मरीज की सांस फूल सकती है और यह किस प्रकार की समस्या का लक्षण हो सकता है?
आपको बता दें कि टाइप 2 डायबिटीज़ से पीड़ित लोगों में रिस्ट्रिक्टिव फेफड़े की बीमारी (आरएलडी) विकसित होने का जोखिम ज्यादा होता है। आरएलडी की पहचान सांस फूलने से की जाती है।
इस बारे में जर्मनी के हेडेलबर्ग अस्पताल विश्वविद्यालय के स्टीफन कोफ ने हाल ही में कहा कि तेजी से सांस फूलना, आरएलडी व फेफड़ों की विसंगतियां टाइप-2 डायबिटीज़ से जुड़ी हैं।
जानवरों पर किए गए पहले के निष्कर्षो में भी रिस्ट्रिक्टिव फेफड़े की बीमारी व डायबिटीज़ के बीच संबंध का पता चला था। प्रोफेसर पीटर पी. नवरोथ ने कहा कि हमें संदेह है कि फेफड़े की बीमारी टाइप 2 डायबिटीज़ का देर से आने वाला परिणाम है।
फेफड़े की बीमारी का हो सकता है संकेत
इस रिसर्च में यह भी पता चला है कि आरएलडी एल्बूमिन्यूरिया के साथ जुड़ा है। एल्ब्यूमिन्यूरिया एक ऐसी स्थिति है, जिसमें पेशाब का एल्ब्यूमिन स्तर बढ़ जाता है। यह फेफड़े की बीमारी व गुर्दे की बीमारी के जुड़े होने का संकेत हो सकता है, जो कि नेफ्रोपैथी से जुड़ा है।
बताते चलें कि नेफ्रोपैथी डायबिटीज़ गुर्दे से जुड़ी बीमारी है। इसमें टाइप-2 डायबिटीज़ वाले 110 मरीजों के आंकड़ों का विश्लेषण किया गया। इसमें 29 मरीजों में हाल में टाइप-2 डायबिटीज़ का पता चला था, 68 मरीज ऐसे थे, जिन्हें पहले से डायबिटीज़ था व 48 मरीजों को डायबिटीज़ नहीं था।
अगर कोई व्यक्ति डायबिटीज़ से पीड़ित है तो वह अपने जीवन में बदलाव लाकर लंबा जीवन जी सकता है। इसके लिए उसे हेल्दी खान-पान, व्यायाम, डॉक्टर की सलाह और ब्लड शुगर लेवल की नियमित जांच कराते रहना चाहिए। पीड़ित चाहे तो अपने शुगर लेवल की निगरानी के लिए बीटओ स्मार्टफोन ग्लूकोमीटर का भी उपयोग कर सकता है।