इंसुलिन प्रतिरोध (रेसिस्टेन्स) के कारण डायबिटीज के साथ आप बन सकते है इन गंभीर समस्याओं का शिकार

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लेखक: डॉ नवनीत अग्रवाल, चीफ क्लिनिकल ऑफ़िसर, BeatO

इन्सुलिन प्रतिरोध (रेसिस्टेन्स) एक मेटाबॉलिक डिसऑर्डर है, जब हम खाना खाते हैं, तो हमारे शरीर में ग्लूकोज निकलता है और हमारा शरीर इस का इस्तेमाल ऊर्जा के लिए करता हैं। पैंक्रियास द्वारा निर्मित इंसुलिन, वह हार्मोन है जो इस प्रक्रिया में मदद करता है। ग्लूकोज मांसपेशियों, वसा कोशिकाओं और लिवर में जमा हो जाता है। यह आपके शरीर को भविष्य में भी ऊर्जा का इस्तेमाल करने में सक्षम बनाता है।

साथ ही, इंसुलिन प्रतिरोध तब होता है जब आपकी कोशिकाएं इस हार्मोन के प्रति सही प्रतिक्रिया नहीं दे पाती है। और आपका शरीर ग्लूकोज को ऊर्जा में परिवर्तित करने में असमर्थ होता है। इस की पूर्ति करने के लिए पैंक्रियास और ज्यादा मात्रा में इन्सुलिन का निर्माण करने लगता है, और समय के साथ आप का ब्लड शुगर लेवल बढ़ने लग जाता है, अगर शरीर में ग्लूकोज या ब्लड शूगर का लेवल सामन्य से ज्यादा हो जाए लेकिन वह इतना ज्यादा न हो कि डायबिटीज के संकेत मिले, तो डॉक्टर इसे प्री डायबिटीज़ के तौर पर मानते है, लेकिन समय रहते इसे नियंत्रित न किया जाए तो टाइप 2 डायबिटीज़ होने का खतरा भी बना रहता है। 

पर क्या आप जानते हैं कि इंसुलिन रेजिस्टेंस सिर्फ ब्लड डायबिटीज की ही समस्या का कारण नहीं है, बल्कि यह स्थिति शरीर में कई अन्य प्रकार की गंभीर बीमारियों के विकास का कारण बन सकती है। डायबिटीज वाले लोगों में कई प्रकार की बीमारियों के बढ़ने का कारण इंसुलिन रेजिस्टेंस है।

इंसुलिन रेजिस्टेंस अन्य बीमारियों के जोखिम को बढ़ाता है

जब हमारे शरीर की कोशिकाएं इंसुलिन के प्रति बहुत अधिक प्रतिरोधी हो जाती हैं, तो इससे शुगर लेवल बढ़ जाता है, जिसे हाइपरग्लेसेमिया कहते है। डायबिटीज रोगियों में यह काफी आम समस्या है, लेकिन इसे नियंत्रित न किया जाए तो इस के कारण हमारे स्वास्थ्य को होने वाले जोखिम बढ़ने लगते हैं।

ऐसे रोगियों में मोटापा, हृदय से संबंधित रोग, नॉन अल्कोहॉलिक फैटी लिवर डिजीज ( एनएएफएलडी), मेटाबॉलिज्म से संबंधित समस्या और पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओएस) जैसी बीमारियों के विकसित होने का खतरा बढ़ जाता है। इसलिए ज़रूरी है कि हम समय पर इसके लक्षणों को पहचान कर सही उपचार करें।

इंसुलिन प्रतिरोध क्यों होता है?

इंसुलिन प्रतिरोध लेकर आप लोगों के मन में कई सवाल होंगे, तो आपके इन सवालों के जवाब हमने नीचे दिए हैं, जिससे आपको यह जानने में मदद मिलेगी कि इंसुलिन प्रतिरोध क्यों होता है:

  • मोटापा: शरीर की अतिरिक्त चर्बी, ख़ास कर पेट के आसपास, इंसुलिन प्रतिरोध से मुख्य रूप से जुड़ी होती है। टीशू ऐसे पदार्थ छोड़ता है जो इंसुलिन की प्रभावशीलता में बाधा डालते हैं।
  • कम शारीरिक गतिविधि: शारीरिक गतिविधि का कम होना मांसपेशियों द्वारा ग्लूकोज के अवशोषण में बाधा पैदा कर के इंसुलिन प्रतिरोध में योगदान करती है। नियमित व्यायाम से इंसुलिन संवेदनशीलता बढ़ती है।
  • आनुवंशिकी: पारिवारिक इतिहास इंसुलिन प्रतिरोध को बढ़ावा दे सकता है। आनुवंशिक कारक प्रभावित करते हैं कि कोशिकाएं कितनी कुशलता से इंसुलिन का इस्तेमाल करती हैं।
  • ख़राब खान-पान: प्रोसेस्ड चीनी, वासा युक्त और डिब्बाबंद खाना इंसुलिन प्रतिरोध में योगदान कर सकते हैं। ये खाद्य पदार्थ ब्लड शुगर लेवल में तेजी से बढ़ोतरी करते हैं, जिससे शरीर की इंसुलिन प्रतिक्रिया पर दबाव पड़ता है।
  • सूजन: पुरानी सूजन, जो अक्सर मोटापे से जुड़ी होती है, इंसुलिन की प्रभावशीलता में बाधा डालती है और इंसुलिन प्रतिरोध में योगदान कर सकती है।

इंसुलिन प्रतिरोध के लक्षण

शुरुआती चरणों में, इंसुलिन प्रतिरोध के ध्यान देने योग्य लक्षण नहीं दिखते हैं। हालाँकि, जैसे-जैसे स्थिति बढ़ती है, निम्नलिखित लक्षण सामने आ सकते हैं:

  • हाई शुगर लेवल: हाई शुगर लेवल इंसुलिन प्रतिरोध की पहचान है और इससे प्रीडायबिटीज या टाइप 2 डायबिटीज हो सकता है।
  • थकान: कोशिकाओं को पर्याप्त ग्लूकोज नहीं मिलने से ऊर्जा का स्तर कम हो जाता है, जिससे लगातार थकान बनी रहती है।
  • भूख का बढ़ना: इंसुलिन प्रतिरोध ज़्यादा भूख को ट्रिगर कर सकता है, विशेष रूप से चीनी और कार्बोहाइड्रेट से भरपूर खाद्य पदार्थों के लिए।
  • वजन बढ़ना: स्वस्थ वजन बनाए रखने में मुश्किल या लगातार वजन बढ़ना इंसुलिन प्रतिरोध का संकेत हो सकता है।
  • त्वचा पर काले धब्बे: एकैन्थोसिस नाइग्रिकन्स नामक स्थिति, जिसमें अक्सर गर्दन या बगल के आसपास त्वचा पर काले धब्बे हो सकते हैं।

प्रभावी रोकथाम रणनीतियाँ

इंसुलिन प्रतिरोध रोकथाम के लिए प्रभावी रणनीति नीचे बताई जा रही है:

  • संतुलित आहार: सब्जियों, फलों, लीन प्रोटीन, साबुत अनाज और हेल्थी फैट के साथ सेहतमंद खाने पर ध्यान दें। कोल्ड ड्रिंक्स, डिब्बाबंद ख़ाने और रिफाइंड कार्ब्स का सेवन कम से कम करें।
  • नियमित व्यायाम: एरोबिक व्यायाम, शक्ति प्रशिक्षण और शरीर के लचीलेपन को बढ़ाने वाले व्यायाम का लक्ष्य रखते हुए नियमित शारीरिक गतिविधि करते रहें। व्यायाम इंसुलिन संवेदनशीलता को बढ़ाता है और वजन को कम करने में सहायता करता है।
  • वजन प्रबंधन: सही वजन बनाए रखने से इंसुलिन प्रतिरोध का खतरा कम हो जाता है। यहां तक कि मामूली वजन घटाने से भी कई लाभ हो सकते हैं।
  • खाने की मात्रा: ज़्यादा खाने से बचने के लिए सिमित मात्रा में खाने का ध्यान रखें, जो वजन बढ़ाने और इंसुलिन प्रतिरोध में योगदान कर सकता है।
  • स्ट्रेस मैनेजमेंट: ज़्यादा तनाव इंसुलिन प्रतिरोध को खराब कर सकता है। ध्यान, योग या गहरी सांस लेने जैसी तनाव कम करने वाली तकनीकों का अभ्यास करें।
  • पूरी नींद: हर रात 7-9 घंटे की नींद लेने को प्राथमिकता दें, क्योंकि खराब नींद का पैटर्न इंसुलिन संवेदनशीलता में बाधा डाल सकता है।
  • शराब का सेवन सीमित करें: ज़्यादा शराब का सेवन ब्लड शुगर लेवल नियंत्रण में मुश्किलें खड़ी कर सकता है। अगर आप शराब का सेवन करते भी हैं, तो कम मात्रा में करें।
  • नियमित जांच: समय-समय पर चिकित्सा जांच कराते रहे इससे इंसुलिन प्रतिरोध का जल्द पता लगाने में मदद मिल सकती है, जिससे समय पर इस समस्या का समाधान कर सकते हैं।

डायबिटीज केयर में सहयोग

प्रभावी डायबिटीज केयर मैनेजमेंट के लिए किसी भी व्यक्ति और हेल्थ एक्सपर्ट के आपसी सहयोग की ज़रूरत होती है। नियमित जांच हेल्थ एक्सपर्ट को आप में होने वाले सुधार की निगरानी करने, सही उपचार योजनाओं को तय करने और इंसुलिन प्रतिरोध और डायबिटीज की चुनौतियों से निपटने में आप का सही मार्गदर्शन करने में सक्षम बनाती है।

निष्कर्ष: इंसुलिन प्रतिरोध एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या है जिसके दूरगामी परिणाम हो सकते है।

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Himani Maharshi

हिमानी महर्षि, एक अनुभवी कंटेंट मार्केटिंग, ब्रांड मार्केटिंग और स्टडी अब्रॉड एक्सपर्ट हैं, इनमें अपने विचारों को शब्दों की माला में पिरोने का हुनर है। मिडिया संस्थानों और कंटेंट राइटिंग में 5+ वर्षों के अनुभव के साथ, उन्होंने मीडिया, शिक्षा और हेल्थकेयर में लगातार विकसित हो रहे परिदृश्यों को नेविगेट किया है।