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Cholelithiasis Treatment in Hindi: पित्ताशय की पथरी के लिए किन तरीकों से कराया जाता है इलाज

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Cholelithiasis Treatment in Hindi: कोलेलिथियसिस को पथरी के नाम से भी जाना जाता है। ये एक ऐसी मेडिकल कंडीशन है, जिसमें पित्ताशय (गॉलब्लैडर) में छोटी-छोटी कंकड़ जैसी पथरियां बनती हैं। ये पथरियां जैविक पदार्थों के कठोर संग्रह से बनती हैं जो ज्यादातर कोलेस्ट्राल या बिलीरुबिन से बनती हैं। पित्ताशय की पथरी रेड ब्लड सेल्स या खनिज कैल्शियम के टूटने से बनती हैं। इन पथरियों का अलग-अलग आकार होता है, जो रेत के दाने के बराबर हो सकती हैं तो वहीं कुछ पथरियां थोड़ी बड़ी होती है। हालांकि, पथरियों की साइज का दर्द से कोई लेना-देना नहीं है। पथरी छोटी या बड़ी दर्द काफी होता है।

पित्ताशय में पथरी के लक्षण दिखने पर उन्हें हटाने के लिए सर्जरी का प्रयोग किया जाता है। आमतौर पर कोलेलिथियसिस के इलाज शल्यचिकित्सा के जरिए किए जाते हैं। इस प्रक्रिया में डॉक्टर पित्ताशय को शरीर से बाहर निकाल देते हैं जिसे हम कोलेसीस्टेक्टॉमी कहते हैं। यह एक कीहोल सर्जरी कहलाता है जिसे पेट में छोटे छेद के जरिए पूरी की जाती है।

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आपको बता दें कि पित्ताशय हमारे शरीर में पाए जाने वाला एक छोटा सा अंग होता है जो बाइल को स्टोर करने का काम करता है। पित्त एक ऐसा तरल पदार्थ होता है जिसमें कोलेस्ट्राल, बिलीरुबिन, बाइल साल्ट जैसे अलग-अलग पदार्थ मौजूद होते हैं। आमतौर पर ये पदार्थ पित्ताशय में इकट्ठे होते रहते हैं जो धीरे-धीरे कठोर बनकर पथरी का रूप ले लेते हैं। ऐसे में इसमें ब्लॉकेज या रुकावट पैदा होने की संभावना रहती है जिस वजह से बहुत सारे असुविधा के लक्षण पैदा हो जाते हैं। 

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ये हैं पित्त पथरी के कुछ लक्षण (Symptoms of gallstones)

  • पेट में दर्द
  • पित्त नलिका में संक्रमण
  • पित्ताशय की सूजन
  • मोटापा
  • मधुमेह
  • हल्का बुखार
  • मैले रंग का मल
  • पीलिया हो जाना
  • दाहिने कंधे में दर्द
  • चाय रंग का पेशाब होना
  • पित्ताशय की सूजन और दाहिनी बगल में दर्द
  • पेट के ऊपरी दाहिनी हिस्से में बीच में ऐंठन
पित्ताशय की पथरी (कोलेलिथियसिस) के लक्षण

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कोलेलिथियसिस के कारण (Causes of cholelithiasis)

  • ब्लड में ज्यादा कोलेस्ट्रॉल होने के कारण कोलेस्ट्रॉल की पथरी बन सकती है।
  • शरीर में ज्यादा बिलीरुबिन होने के कारण बिलीरुबिन की पथरी बन सकती है।
  • जब लिवर में पित्त एकस्ट्रा कोलेस्ट्रॉल को तोड़ नहीं पाता है तब वह पित्त पथरी में बदल जाती है।

डायबिटीज, बोने मैरो (अस्थि मज्जा)ट्रांसप्लांट या ऑर्गन ट्रांसप्लांट, प्रेग्रेंसी के समय पित्ताशय का पित्त पूरी तरह खाली न हो पाना, लिवर सिरोसिस, गर्भनिरोधक गोलियां का लंबे समय तक प्रयोग करना जैसे कारण हैं जो पित्ताशय की पथरी बनने की संभावना को बढ़ाते हैं। अगर इनमें से आपको कोई भी लक्षण दिख रहा है तो आपको पित्ताशय की पथरी हो सकती है। ऐसे में आपको अपने डॉक्टर/हेल्थ एक्सपर्ट्स से राय ले सकते हैं।

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कोलेलिथियसिस यानी पित्ताशय की पथरी में जटिलताएं (Complications in cholelithiasis gallstones)

  • सूजन
  • पीलिया
  • बुखार
  • संक्रमण
  • पेट में दर्द
  • ठंड लगना
  • भूख में कमी
  • ब्लड में संक्रमण
  • कोलेसीस्टाइटिस
  • पित्ताशय का कैंसर
  • पित्ताशय की थैली में एक विकार

कोलेलिथियसिस का निदान करने के तरीके (Ways to Diagnose Cholelithiasis)

कोलेलिथियसिस का निदान करने के लिए ब्लड टेस्ट और इमेजिंग टेस्ट किया जाता है। ब्लड टेस्ट से हमें सूजन, संक्रमण या पीलिया के बारे में पता चलता है, जो हमें यह बताता है कि कौन से अंग प्रभावित हैं। वहीं, बात इमेजिंग टेस्टिंग की करें तो हमें इमेजिंग टेस्ट से पित्त पथ में रुकावट के बारे में पता चलता है।

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इन ब्लड टेस्टों की होती है आवश्यकता

बिलीरुबिन टेस्ट: अगर आप बाइल डक्ट में रुकावट के बारे में जानना चाहते हैं तो इसके लिए आपको ब्लड में बिलीरुबिन की मात्रा को मापना होगा। ऐसे में बिलीरुबिन टेस्ट खून में बिलीरुबिन की मात्रा को मापने का काम करता है।

लिवर फंक्शन टेस्ट: लिवर फंक्शन टेस्ट लिवर के स्वास्थ्य के बारे में बताता है, जिससे पित्त नलिकाओं में रुकावट का पता लगाया जाता है।

कंप्लीट ब्लड काउंट: कोलेलिथियसिस के निदान के लिए कंप्लीट ब्लड काउंट एक महत्वपूर्ण टेस्ट होता है, जो हमारे खून में लाल रुधिर कोशिकाओं और सफेद रुधिर कोशिकाओं की संख्या को मापने का काम करता है।

पैंक्रियाटिक एंजाइम टेस्ट: पैंक्रियाटिक एंजाइम टेस्ट कोलेलिथियसिस के निदान के लिए किया जाता है, जो आपके खून में पैंक्रियाज या अग्राशय से आने वाले एंजाइम के स्तरों को मापने का काम करता है, जिससे पैंक्रियाज में क्षति के बारे में पता चलता है।

इमेजिंग टेस्ट

सीटी स्कैन और पेट का अल्ट्रासाउंड: अगर आप पित्ताशय की पथरी के बारे में पता लगाना चाहते हैं तो इसके लिए सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाने वाला टेस्ट सीटी स्कैन है।

एंडोस्कोपिक अल्ट्रासाउंड: एंडोस्कोपिक अल्ट्रासाउंड छोटी पथरियों के बारे में पता लगाने के लिए किया जाता है। दरअसल, छोटी पथरियों के बारे में जानकारी सीटी स्कैन या अल्ट्रासाउंड के जरिए सामने नहीं आती हैं। ऐसे में छोटी पथरियों का पता लगाने के लिए एंडोस्कोपिक अल्ट्रासाउंड टेस्ट का प्रयोग किया जाता है।

मैग्नेटिक रेजोनेंस कोलेजनियो-पैनक्रिएटोग्राफी: यह एक तरह का नॉन-इनवेजिव टेस्ट होता है जिसमें पित्त नलिकाओं को देखकर उनकी स्पष्ट इमेज निकाला जाता है।

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कोलेलिथियसिस के इलाज के तरीके (Treatment methods for cholelithiasis)

कोलेलिथियसिस का इलाज दवाओं और सर्जरी के जरिए किया जा सकता है। कुछ दवाएं पथरी को पूरी तरह से घोलकर काम करती हैं। हालांकि, महीनों या कई सालों तक पथरी को पूरी तरह से घोलने के लिए दवा लेनी पड़ी सकती है। आमतौर पर पथरी का इलाज दवा के जरिए करने का सुझाव उन लोगों को दिया जाता है जो किसी कारण से सर्जरी नहीं करा सकते हैं। कोलेलिथियसिस के इलाज के लिए सर्जरी को सबसे अच्छा ऑप्शन माना जाता है। इस प्रक्रिया को कोलेसिस्टेक्टोमी कहते हैं।

ओपन कोलेसिस्टेक्टोमी: कोलेलिथियसिस के इलाज के लिए ओपन कोलेसिस्टेक्टोमी एक ओपन सर्जरी होती है जो पित्ताशय को पूरी तरह से हटाने का काम करती है। इसकी सलाह तब दी जाती है जब पित्ताशय में गंभीर स्तर पर सूजन होता है। इस तरह के सूजन को कोलेसिस्टाइटिस कहा जाता है।

एंडोस्कोपी: कोलेलिथियसिस के इलाज के लिए एंडोस्कोपी तकनीक के जरिए पित्त नलिकाओं में से पित्त को हटाया जाता है। इस पूरी प्रक्रिया में कोई चीरा नहीं लगाया जाता है। गले के नीचे लंबी ट्यूब डालकर पित्ताशय की पथरी को बाहर निकालने का काम किया जाता है।

लैप्रोस्कोपी: कोलेलिथियसिस के इलाज के लिए लैप्रोस्कोपी प्रक्रिया में पेट पर एक छोटा चीरा लगाया जाता है, जिसमें से सर्जरी करने के लिए लैप्रोस्कोप को अंदर डाल दिया जाता है। लैप्रोस्कोप पर एक कैमरा लगा रहता है जिसे एक चीरे के जरिए अंदर डाला जाता है और दूसरे चीरे के माध्यम से पित्ताशय को हटा देते हैं। इस पूरी प्रक्रिया में मरीज को दर्द कम होता है और वह जल्दी रिकवर होता है।

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अक्सर पूछे जाने वाले सवाल

सवाल: क्या महिलाओं में पित्ताशय की पथरी होने का खतरा ज्यादा रहता है?

जवाब: एस्ट्रोजन हार्मोन की वजह से महिलाओं में पित्ताशय की पथरी होने का खतरा ज्यादा रहता है। बता दें कि यह हार्मोन कोलेस्ट्रॉल के स्तर को बढ़ाने के साथ ही पित्ताशय की थैली के संकुचन को धीमा करता है। पीरियड्स और प्रेग्नेंसी समय में एस्ट्रोजन का स्तर उच्चा होता है जिस वजह से पित्ताशय की पथरी बनने की संभावना ज्यादा रहती है।

सवाल: पित्ताशय की सर्जरी के साइड-इफेक्ट्स क्या हैं?

जवाब: आमतौर पर पित्ताशय की सर्जरी सुरक्षित मानी जाती है। सर्जरी के समय जटिलताएं होने की संभावना काफी कम रहती हैं। सर्जरी के बाद पेट में दर्द या गैस जैसी समस्याएं बन सकती हैं।

सवाल: क्या खान-पान में बदलाव करके पित्ताशय की पथरी को रोका जा सकता है?

जवाब: पित्ताशय की पथरी को नहीं रोका जा सकता है। हालांकि, डाइट में फाइबर का सेवन बढ़ाकर और कोलेस्ट्राल कम करके पित्ताशय की पथरी के जोखिम को कम किया जा सकता है।

सवाल: क्या पित्ताशय की पथरी की सर्जरी के बाद खान-पान में बदलाव करना जरूरी होता है?

जवाब: पित्ताशय की पथरी की सर्जरी के बाद आप कम फैट वाला भोजन ले सकते हैं।

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Anand Kumar

Anand Kumar

आनंद एक पत्रकार होने के साथ-साथ कंटेट राइटर भी हैं। फिलहाल वह BeatO पर हेल्थ से जुड़े विषयों पर लिख रहे हैं। उन्होंने कई मीडिया संस्थानों के साथ काम किया है। उनके पास मीडिया में काम करने का 4 साल से ज्यादा का अनुभव है। उन्होंने राजनीतिक-सामाजिक विषयों पर ग्राउंड रिपोर्टिंग के साथ-साथ विभिन्न प्लेटफार्मों के लिए कई लेख भी लिखे हैं।

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